पहली शरुवात

संघर्षों की शरुवात किस पल हुई

ये भी अब याद नही

कुम्हार की चाकी की गीली मिट्टी

कब सख्त हुई

इसकी भी कुछ मुक्कमल जानकारी नही

पथ पे अवरोध बढ़ते गए

कंकर भी कब चुभना बंद हो गए

इसकी भी कोई ताकीद नही

ये सबका मूल स्रोत खोजना अब उतना

ही कठिन हो गया है

जितना कि वाष्प में बदल चुकी जल की बूंद का उदगम पता करना

ना जाने कौन सा पानी है हम

नदी, तालाब, पोखर या सागर

लेकिन अब ये सब पता नही करना

बस बरसने की चाह है

बरसेगे तो मन का बहुत कुछ घुल जाएगा

अब नई रंगों को देखने की चाह है।

~प्रेरणा

#self_creation

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